ध्यान का अगला चरण है खुद को तैयार करना। इसलिए हम बायीं ओर को साफ करने, दायीं ओर को साफ करने, चक्रों को साफ करने और फिर ध्यान की अवस्था में जाने के लिए आज्ञा चक्र को खोलने और विचारशून्य जागरूकता में जाने के चरण करते हैं।
सबसे पहली और महत्वपूर्ण चीज है कि आत्मसाक्षात्कार आपको बिना किसी प्रयास के मिल जाता है| तो जो हर समय प्रयास करना आपके शरीर के अन्दर बन गया है, प्रयास करने की शक्ति,” मुझे यह करना ही है, मुझे वह करना ही चाहिए, मुझे यह करना है, मुझे वह करना है !” यह तनाव पैदा करता है, जो कि मैंने आपको पहले से ही बताया हुआ है।
तो हम क्या करे? हम दूसरो से प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश नहीं करते| हम कुछ समय, तारीख, घडी निश्चित करने की कोशिश नहीं करते| हम ऐसे कार्य जो कि हमे प्रयत्न करने में डालता है उस पर भी हम अपना चित नहीं डालते, लेकिन हम अपने प्रयत्न करने के रवैये को शिथिल करते है| इसे संस्कृत में “प्रयत्न शैथिल्य” कहा गया है। किसी भी पश्चिमी दिमाग के लिए यह विषय समझना बहुत ही कठिन है, तो समझने की कोशिश कीजिये| पर इसका मतलब आलस्य नहीं, यह आलस नहीं है| किसी को भी मृत और जीवित ऊर्जा में भ्रमित नहीं होना चाहिए| अब हम अपनी ऊर्जा को आत्मा की शक्ति की तरफ बदलने की कोशिश कर रहे है| तो आपको आत्मा को अपना कार्यभार लेने देना होगI आपके दिमाग से होने वाले सभी प्रयास कम होने चाहिए और आत्मा की शक्ति आपके द्वारा कार्यान्वित होनी चाहिए|
लेकिन फिर भी यह दिमाग जो कि काफी मूर्ख है, आपको प्रभावित करने की कोशिश करेगा कि आपको पुराने जंग लगे इस दिमाग के यन्त्र का उपयोग करना है और यह जोर देगा कि “बेहतर है इस्तेमाल करे!” और जब आप उसे इस्तेमाल करेंगे, तो अहंकार आ जाता है, आप उसमे लिप्त हो जाते है, और आप क्या खोते है अपना उत्थान और इसलिए आनंद कम हो जाता है I अब स्वयं को अनासक्त कैसे करे? उस इंसान के लिए जो कि पूर्ण रूप से अनासक्त है उसके लिए यह बहुत कठिन है यह समझना की कैसे खुद को अलग करे, है ना? मैं कोशिश करूंगी! (हॅसते हुए) मैं किसी भी चीज़ में लिप्त नहीं हो पाती यही तो परेशानी है और मुझे यह आपको शब्दों में समझाने में दिक्कत आती है, जो इंसानी शब्द है पर फिर भी, मैं अब कोशिश करूंगी कहने की|
सम्पूर्ण भाषण का लिंक: 1984-0422 Easter Puja Talk, Hampstead