प्रवचन: ध्यान 1: निश्चिंत (आराम से) हो जाएँ, भगवान आपके साथ है – 26-11-1982 – कैक्सटन हॉल
आपने यहां किसी प्रतियोगिता में प्रवेश नहीं किया है। बस आराम (निश्चिंती) से रहें । अब आराम (निश्चिंती) से रहें! फिर आप सहज योग से संबन्धित जितना अधिक करना चाहते हैं फिर से आप तनावग्रस्त हो जाते हैं। “मुझे सुबह जल्दी ध्यान करना है; मुझे कल सुबह जल्दी उठना है। आप देखें आप अपने आप को परेशान करने लगते हैं। पूरी रात आप सोते नहीं और जब आप ध्यान करते हैं तो आप सो जाते हैं। आराम करें। ईश्वर आपकी देख रेख कर रहा है, मेरा विश्वास करें! (मुस्कुराते हुए) वह आपको साक्षात्कार देने वाले हैं और वह आपकी देखभाल करने वाले हैं और वह आपको सुबह जगाने वाले भी हैं लेकिन आराम (निश्चिंती) से रहें। सबसे पहले यह विचार कि “यह मैं कर सकता हूं” गलत है। उन्हें (परमात्मा को) यह कार्य करना हैं। यह कार्यान्वित नहीं होता है क्योंकि आपको लगता है कि आप इसे कर सकते हैं। यदि आप यह समझ लें, “मैं इसे नहीं कर सकता, यह उनकी (ईश्वर की) दया है, उनकी कृपा को कार्यान्वित होना है।”
लेकिन साक्षात्कार के बाद आपको कुछ करना होगा, इस अर्थ में कि आपको इच्छा करनी होगी। लेकिन जब मैं कहती हूं कि आपको इच्छा करनी है तो आप कहेंगे “ठीक है। अब मैं यहाँ बैठ जाऊंगा और मैं इस स्थान पर जम जाऊंगा और मैं बैठूंगा और इच्छा करूंगा। ऐसी इच्छा म्रत इच्छा है, आप देखें, जैसे आपके सिर पर जबर्दस्ती रखी गई हो कि “आह, मुझे इच्छा करनी चाहिए। माँ ने कहा है मुझे इच्छा करनी चाहिए”। आपको भूख पैदा करनी होगी। आप यह नहीं कहते हैं कि “मुझे इच्छा करनी है कि मुझे भूख लगना चाहिए,” क्या आप ऐसा करते हैं? भूख अंदर से आती है, जो वहाँ पहले से है, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन बादलों से ढकी है। भूख इसलिए बुझी है क्योंकि आपको डर है। यदि आप एक बाघ के सामने एक बकरी रखते हैं और उसे खाने के लिए देते हैं तो वह कमज़ोर हो जाएगी, उसको खाने से, जो भी हो, क्योंकि उसे वह डर है कि वहाँ एक बाघ है जो मुझे खा जाएगा।
इसलिए पहले अपने आसपास के सभी काल्पनिक बाघों को मार डालें। फिर से हम उसी पर वापस आते हैं कि इच्छा आपके अंदर से आनी चाहिए और यह वहाँ है लेकिन आच्छादित है। आराम (निश्चिंती) से रहें।
यह ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि “मैं बहुत आराम (निश्चिंती) से हूँ!” यह बच्चे जैसा है। यह आसान है। एक तनाव मुक्त व्यक्ति, एक बच्चे की तरह होता है। इसलिए भयाक्रांत न हों। आराम (विश्राम) करने की कोशिश करें । बस इतना ही। सभी के लिए। लेकिन आराम (निश्चिंती) का मतलब यह नहीं है कि आप निष्क्रिय हैं, इसके विपरीत, जो व्यक्ति आराम (निश्चिंती) से है वह बाह्य में बेहद सक्रिय होता है लेकिन अंदर से पूरी तरह से शांत, बिल्कुल आराम (निश्चिंती) से और सुगमता मे। बाह्य मे आप सक्रिय महसूस कर सकते हैं।
जैसा कि आप जानते हैं अब इस समय जबरदस्त चैतन्य वह रहा है और मैं (चैतन्य के) जबरदस्त प्रवाह को देख सकती हूं। और सभी चक्र मेरे आसपास इस तरह से स्पंदन कर रहे है लेकिन मैं उन्हें और उनके खेल को देखती हूं। ज्यादा से ज्यादा मैं बात करना बंद कर सकती हूं लेकिन यह (चैतन्य) बह रहा है।
इसलिए चाहे यह खोज के लिए हो या दुनिया में किसी भी अन्य चीज के लिए हो, पहली बात यह है कि आपको एक साक्षी जो बिलकुल आराम से है वैसा रवैया अपनाना चाहिए। यदि आप ऐसा कर सकते हैं तो जो चैतन्य लहरियाँ महसूस नहीं करते हैं, निश्चित रूप से महसूस करेंगे। मैंने ऐसे लोगों को देखा है जिन पर मैं काम कर रही हूं और यह कार्यान्वित नहीं होता है। बेशक वे अशिष्ट या किसी भी तरह से अभिमानी नहीं थे लेकिन बहुत मायूस महसूस कर रहे थे कि वे चैतन्य प्राप्त नहीं कर सके, इसलिए मैंने कहा, “ठीक है, आज आप जाइए और एक बगीचे में फूलों का आनंद लें। पक्षियों का आनंद लें और आकाश से बात करें और कल वापस आएं”- यह कार्यान्वित होता है।
क्योंकि आप हमेशा से ऐसे ही रहे हैं। सहज योग में आपको कुछ भी हासिल नहीं करना है। आप बन जाते है। पहले आप बन जाएँ और फिर मानसिक रूप से आप सहज योग को समझने लगते हैं। लेकिन जो लोग सहज योग को पहले मानसिक रूप से समझने की कोशिश करते हैं वे वास्तव में मुसीबत में हैं क्योंकि जब आप इसे पढ़ते हैं तो यह बहुत महान लगता है और आप सोचते हैं, “हे भगवान, मैं कहां हूं?”
इसलिए कृपया यदि आप किसी को साक्षात्कार देते हैं तो उसे शांति और धैर्य से दें। यह बढ़ेगा। अगले पल ही पढ़ने के लिए ‘एडवेंट’ (सहज योग पर एक पुस्तक) न दें, हम ऐसा करते हैं! क्यूं? हमें लगता है कि हमें उस व्यक्ति को प्रभावित करना चाहिए कि सहज योग एक महान चीज है और व्यक्ति को ‘एडवेंट’ पढ़ना चाहिए ताकि वह सहज योग में आए और हम इस आदमी को स्थापित करेंगे क्योंकि वह देखेंगे और प्रभावित होंगे।
यदि कोई व्यक्ति इन चीजों से प्रभावित होने जा रहा है तो ऐसा व्यक्ति सहज योग के लिए किसी काम का नहीं है, इसे मुझसे ले लो। यदि वे किसी बाहरी और सतही चीज से प्रभावित होने जा रहे हैं तो वे कितनी दूर जाएंगे? उन्हें इसे अपने अंदर अपनी आत्मा से हासिल करना होगा। उन्हें अपने आप से प्रभावित होना है, अपनी खुद की उपलब्धियों से। यदि आप इस सरल सिद्धांत को समझते हैं कि जब हम आत्मा हो जाते हैं तो हम एक ऐसी शक्ति अभिव्यक्त करते हैं जो किसी अन्य तथा कथित शक्ति के ठीक विपरीत है।
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