तो आस्था कहाँ से शुरू होती है? मंजिल क्या है? आस्था के 3 प्रकार हैं जिन्हें विकसित किया जाना चाहिए। पहला है ईश्वर में आस्था। यह अटूट आस्था है, अंध आस्था नहीं बल्कि प्रबुद्ध आस्था सबसे महत्वपूर्ण है। इसे हम अपनी मंजिल कह सकते हैं जिसे हमें हर दिन तब तक बढ़ाते रहना चाहिए जब तक हम वह नहीं बन जाते। दूसरे शब्दों में इसे निर्विकल्प समाधि कहते हैं, इसका मतलब है मन की वह अवस्था जहाँ हमें सहज योग के बारे में, श्री माताजी के ईश्वर होने के बारे में कोई संदेह नहीं है और हमने दिव्यता की उस अवस्था को छू लिया है। तो अब हम जानते हैं कि हमें क्या विकसित करने की आवश्यकता है। लेकिन फिर हम कहाँ से शुरू करें, यह अपने आप में आस्था से शुरू होता है। यह शुरुआती बिंदु है। अगर हमें खुद पर भरोसा नहीं है तो यह यात्रा शुरू नहीं होती। इसलिए दूसरी प्रगति खुद पर आस्था से होनी चाहिए। तीसरा वह कौन है जो हमें हमारे और ईश्वर के बीच जोड़ता है? यह परमचेतना है, कंपन है, ईश्वर की सर्वव्यापी शक्ति है। हमें उस शक्ति को विकसित करना है और उसमें वृद्धि करनी है तथा पहले उसे महसूस करना है, उस पर विश्वास करना है, जब तक कि वह विश्वास पूरी तरह से अटूट न हो जाए।
ऐसा हमारे साथ नहीं है। यह सब कुछ हमारे अंदर है। हमने यह सब प्राप्त किया है, वह सब वहाँ है, हम सब इसके अधिकारी हैं, आप केवल यह धारणा करे। जब आप इसकी धारणा करते है तो सभी बाधाएं दूर हो जाएंगी, सभी नाकारात्मकताएं दूर हो जाएंगी और आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे। ऐसे व्यक्ति के समक्ष कौन खड़ा हो सकता है, जो एक संत है, जो गुरु है और वह जानता हो कि वह गुरु है। कोई भी खड़ा नहीं हो सकता है। वे भाग जाएंगे। लेकिन आपको यह देखने के लिए आत्म निरीक्षण करना होगा कि आपका आत्म-तत्व पूरी तरह से जाग्रत है। यह सिर्फ इतना नहीं है कि आप सोच रहे हैं कि आप एक गुरु हैं।
मै कुछ असली गुरुओं को जानती हूँ। मैं आपको कभी उनके पास जाने की अनुमति नहीं दूंगी क्योंकि सिर्फ भगवान ही जानता है कि उनके पास जाने के बाद आप एक टुकड़े में वापस आएंगे या नहीं (शारीरिक रूप से)! और मैंने उन्हें बताया भी है कि वे असली गुरु हैं, मुझे पता है, लेकिन उनके पास मत जाइए। क्योंकि उनमे अनुकम्पा की कमी है, यह सहज शैली। उन्हें लगता है कि उन्होंने बहुत मेहनत की है तो इन लोगों को भी बहुत मेहनत क्यों नहीं करनी चाहिए।
आप कुछ भी हो। आप ये काम कर सकते हो या वो काम कर सकते हो, आप शिक्षित हो अशिक्षित हों. कोई फर्क नहीं पड़ता। चाहे आप अमीर हों, या गरीब, कोई फर्क नहीं पड़ता, जब तक आप जानते हैं कि आप गुरु हैं और आप अपनी शक्ति को धारणा करते हैं, उस धारणा में, जैसे कोई प्रतिभा हो, यदि आप संगीत जानते हैं, तो आप जानते हैं कि आप संगीत जानते हैं। यदि आप जानते हैं कि कैसे खाना बनाना है, तो आप जानते हैं कि कैसे खाना बनाना है, अगर आप एक प्रशासक हैं और यदि आप प्रशासन जानते हैं, तो आप प्रशासन समझते हैं। लेकिन यह धारणा भी, पूरी तरह से पूर्ण नहीं भी हो सकती है। लेकिन आप पहले से ही परम वास्तविकता की परिपूर्णता है। परम वास्तविकता मे आपके विनियोग में है। लेकिन आप इसे धारणा करे। आप बिल्कुल साधारण नही हैं। आप कह सकते हैं कि आप असाधारण से भी ज़्यादा हैं।
उसमें जो भी निस्सार (निरर्थक) हैं, आप उन सभी को छोड़ देंगे, बस छोड़ देंगे । अन्य लोग आपको देखेंगे और आश्चर्यचकित होंगे: कि ये किस तरह के लोग हैं? ये किस तरह का जीवन जीते हैं, ये कितने अच्छे हैं, ये कितने दयालु हैं। और यह ज्ञान इतना सूक्ष्म और इतना महान और उच्चतम गुणवत्ता युक्त है। लेकिन इसे जानते हुए, आप अहंकारवश फूला हुआ महसूस नहीं करते हैं। मैंने किसी भी सहज योगी को यह कहते नहीं देखा कि, “मैं चक्रों के बारे में, सब कुछ जानता हूं”। “में यह जानता हूं, में वो जानता हूं” “आप इस तरह कहने की हिम्मत कैसे करते हैं ?” – अपनी मूंछ ऊपर करके (हंसी के साथ)। नहीं, इस सब ज्ञान के साथ आप फलों से लदे हुए पेड़ों की तरह झुकते हैं। और वह नम्रता, सादगी आपको विशेष बना देती है, जो किसी के भी हृदय को छू सकती है।
इस प्रकार आप सत्य के देवदूत बन गए। हम विलियम ब्लेक जैसे पैगंबर बन सकते हैं। आप ऐसा बन सकते हैं। आप स्वयं विश्वास नहीं करेंगे कि इतनी सारी चीजों को आप अभिव्यक्त करेंगे। लेकिन विश्वास करे। लेकिन विश्वास करे कि आप उस महान शक्ति के साथ हैं जो सर्वशक्तिमान परमात्मा है। मैं सोचती हूँ कि क्राइस्ट की पवित्र अवधारणा के बारे वे युगों से चर्चा कर रहे थे। ऐसे बेवकूफ लोग मैंने कभी नहीं देखे। लेकिन वह परमात्मा है! वह सर्वशक्तिमान परमात्मा है , वह इंसान नहीं है! वह कुछ भी कर सकते है! आप उनकी योग्यता को कैसे पहचान सकते है? और आप उनकी शक्तियों और कार्यो के बारे में निर्णय कैसे ले सकते है? आप ऐसे कैसे कर सकते है? परमात्मा के बारे में चर्चा करने के लिए, क्या आपको उनका दिमाग हैं? मेरा मतलब है, यह कुछ ऐसे ही है जैसे मेरे जैसा एक व्यक्ति बैंकिंग के बारे में चर्चा करे! एक या दो वाक्य कहने के बाद चर्चा बंद। (हंसी) इसी तरह जब आप परमात्मा पर चर्चा करना शुरू करते हैं तो आपको पता होना चाहिए कि आपके पास परमात्मा के बारे में चर्चा करने की क्षमता नहीं है. उनके संबंध क्या हैं, उनको एक बेटा कैसे मिला, यह और वह। आप कौन है? आपकी अपनी स्थिति क्या है जिस पर आप चर्चा कर सकते हैं?
और फिर उस विनम्रता में आप महसूस करते हैं: यह सर्वशक्तिमान परमात्मा है, वह सर्वशक्तिमान है। वह कुछ भी कर सकते है! तब वह विश्वास आ जाता है, अंध विश्वास नहीं, पर दृढ़विश्वास और वह अनुभूति कि वह परमात्मा सर्वशक्तिमान है और आप उस सर्वशक्तिमान परमात्मा के दूत बन गए हैं, आपको सारी शक्ति, सारा साहस, सबकुछ देता है और उसकी करुणा, उसका प्यार, उसका ध्यान और उसकी समझ। तो यह अटूट विश्वास आपके साथ होना चाहिए।
एक बार जब मैं एक असली गुरु से मिलने गई। वह अन्यथा बहुत ही भयंकर थे! निसंदेह उन्होंने बहुत सारे लोगों को थप्पड़ मारे, पहाड़ियों से फेंक दिया है और उन्होंने ऐसे ही अन्य वहुत सारे क्रत्य किए है। लेकिन मेरे लिए उनमे जबरदस्त सम्मान है। मैं उनके पास गई तो उन्होने मुझसे ऐसे बात करना शुरू कर दिया जैसे कि वह परमात्मा से बात कर रहे हों उन्होंने कहा “आपको इन सांसरिक लोगो के बारे में क्या लगता है?” मैंने कहा, “ठीक है, आखिरकार मैंने उन्हें बनाया है!” (हंसी) उन्होंने कहा, “आप भगवान हैं, अपनी शक्ति से आप उन्हें थोड़ा सा क्यों नहीं बदल देते है? “मैंने कहा,” यही समस्या है। मैंने उन्हें स्वतंत्रता दी है। मैंने कहा, ‘ठीक है, यह स्वतंत्रता आपकी है। आप चुन सकते हैं कि आप बदलना चाहते हैं या नहीं, ‘मैं मजबूर नहीं कर सकती। उन्होंने कहा,” लेकिन आप सर्वशक्तिमान हैं, आप कुछ भी कर सकती हैं। “मैंने कहा,” मैं सब कुछ कर सकती हूं लेकिन मैं कुछ चीजें नहीं करना चाहती और उनमें से एक है उनसे उनकी स्वतंत्रता छीनना। चुनने की उनकी स्वतंत्रता है। उन्हें यह स्वतंत्रता दी गयी है, ताकि जो अंतिम स्वतंत्रता पाने के लिए उनकी यह छोटी स्वतंत्रता बरकरार रहना चाहिए।
तो वह इस बारे में मुझसे झगड़ा कर रहे थे, उन्होंने कहा, “लेकिन जब आप सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं तो इन भयानक लोगों को बदलने केलिए कुछ और तरीका हो सकता है, क्या करना चाहिए?” मैंने कहा, “आपकी चिंता ठीक है और मैं समझती हूं क्योंकि तुम गुरु हो, लेकिन अगर मान ले कि मैं सर्वशक्तिमान परमात्मा हूं, तो मेरी शैली अलग है। मैं तुम्हारे जैसी नहीं हो सकती। फिर उन्होंने कहा, “यह सच है”! आप मेरे जैसे नहीं हो सकते”। यही चीज़ थी जो मैंने उनमें पाई। वह मुझसे बात कर रहे थे जैसे कि उनके सामने परमात्मा खड़े हैं। और फिर उन्होंने अपने सभी शिष्यों से कहा, “आप सब देखो, आप भगवान की स्तुति करो, उनकी स्तुति करो क्योंकि भगवान प्रशंसा के शौकीन हैं।” मैंने कहा, “वास्तव में?” “हाँ! (हंसी) यदि आप भगवान की स्तुति करते हैं तो वह आपको सब कुछ देते है, मैंने इसे देखा है। मैं हमेशा उनकी प्रशंसा करता हूं। जब भी मैं कुछ करना चाहता हूं, मैं सिर्फ उनकी प्रशंसा करता हूं और वह मेरे लिए कर देते है। “इसलिए, मैंने कहा,” यह सच है, मुझे इसे स्वीकार करना होगा। “क्योंकि वह भक्ति गम्या (भक्ति के माध्यम से प्राप्त) है।
आप तब तक माँ तक नहीं पहुंच सकते जब तक कि आपके दिल मे वास्तव में भक्ति नहीं हो जाती। यह पहले से ही एक अंतर्निहित प्रतिबंध है। आप क्या कर सकते हो? यदि आपके पास भक्ति नहीं है तो आप माँ तक नहीं पहुंच सकते हैं, नहीं, आप नहीं पहुंच सकते। आप भगवान तक नहीं पहुंच सकते। लेकिन अगर आपके पास भक्ति है तो आप माँ तक पहुंच सकते हैं। भक्ति गम्या, यह लिखा गया है, अगर कोई कहता है, “ठीक है। मेरी कुंडलिनी उठाओ”! मैं उसकी कुंडलिनी नहीं उठा सकती, केवल इतना ही नहीं सात जन्मो तक उसे आत्म साक्षात्कार प्राप्त नहीं होगा। लेकिन अगर कोई एक बार भी कह दे, “माँ कृपया मुझे आत्म साक्षात्कार दें।” तो उसे ततक्षण प्राप्त हो जाता है।
तो न केवल नम्रता, पर भक्ति भी । और भक्ति केवल तभी संभव है जब आपका विश्वास है। बात विश्वास की है जो आज कल सभी प्रकार के बेवकूफ लोगों द्वारा चुनौती दी जा रही है; जो अपने को बौद्धिक कहते हैं, ये भयानक लोग जो अपने दिमाग से या विज्ञान और तथा कथित ‘कैथोलिक चर्च’ और इस चर्च और उस चर्च से, तर्क वितर्क करते हैं।
तो परमात्मा में आपका विश्वास पूर्ण रूप से अटूट होना चाहिए जिसे कोई भी डिगा नहीं सके। यह बहुत महत्वपूर्ण है। आपने परमात्मा के सभी चमत्कारों को देखा है, आपने देखा है कि आप उसकी शक्तियों को कैसे प्रयोग कर रहे हैं। आप इन सभी चीजों को जानते हैं। लेकिन फिर भी परमात्मा में विश्वास नहीं है। जिस व्यक्ति का ईश्वर पर पूर्ण विश्वास है उसे ईश्वर के रूप में जाना जाता है … भगवान स्वयं ही कहा जाता हैं। इसी को परम चैतन्य कहा जाता है। गुरु उस व्यक्ति को कहा जाता है जो स्वयं ब्रह्म चैतन्य है। तो जब भगवान में यह विश्वास पूरी तरह से स्थापित है कि, “सर्वशक्तिमान परमात्मा है। वह सर्वशक्तिमान है, और मैं उस परमात्मा का दूत हूं। “बस यह समझ जब यह आपके भीतर बिल्कुल दृढ़ हो जाती है, तो आप गुरु पद में हैं।
मैं आज आपको आशीर्वाद देती हूं कि आप सभी उस गुरु पद की स्थिति प्राप्त करें। और जहां भी आप हैं, जो भी आपकी पदवी हो, जो कुछ भी आप करते हों, आपका परमात्मा मे अडिग, अटूट विशास स्वयं ही अपने को व्यक्त करेगा। केवल इतना ही नहीं यह कार्य परमात्मा की तरह अभिव्यक्त होगा।
बहुत सारी चीजें कही जा सकती है। मैंने आपके समक्ष इतनी सारी चीजें पहले भी कही है। और भविष्य में भी बहुत कुछ कहा जा सकता है लेकिन आज हमें एक बात याद रखना होगा कि हमें परमात्मा के राज्य और सर्वशक्तिमान परमात्मा की शक्तियों के प्रति अडिग विश्वास होना चाहिए और फिर अपने आप में पूर्ण विश्वास होना चाहिए।
पारमात्मा आपको आशीर्वदित करें।
सम्पूर्ण भाषण का लिंक: 1992-0719 Guru Puja Talk: Gravity, Cabella, Italy, DP-RAW